Wednesday, December 24, 2014

संभोग से समाधि की और--ओशो (बारहवां प्रवचन) युवा चित्त का जन्‍म



संभोग से समाधि की और--ओशो (बाहवां प्रवचन)


युवा चित्त का जन्‍मबाहवां प्रवचन

मेरे प्रिय आत्मन
      सोरवान विश्वविद्यालय की दीवालों पर जगह—जगह एक नया ही वाक्य लिखा हुआ दिखायी पड़ता है। जगह—जगह दीवालों परद्वारों पर लिखा है :  ' 'प्रोफेसर्सयू आर ओल्ड' ' — अध्यापकगणआप बूढ़े हो गये हैं!
      सोरवान विश्वविद्यालय की दीवालों पर जो लिखा हैवह मनुष्य की पूरी संस्कृतिपूरी सभ्यता की दीवालों पर लिखा जा सकता है। सब कुछ बूढ़ा हो गया हैअध्यापक ही नहीं। मनुष्य का मन भी बूढ़ा हो गया है।
      मैंने सुना है कि लाओत्से के संबंध में एक कहानी है कि वह बूढ़ा ही पैदा हुआ है। यह कहानी कैसे सच होगीकहना मुश्‍किल है। सुना नहीं कि कभी कोई आदमी बूढ़ा ही पैदा हुआ हो! शरीर से तो कभी नहीं सुना है कि कोई आदमी बूढ़ा पैदा हुआ हो! लेकिन ऐसा हो सकता है कि मन से आदमी पैदा होते ही बूढ़ा हो जाये।

      और लाओत्से भी अगर बूढ़ा पैदा हुआ होगातो इसी अर्थ में कि वह कभी बच्चा नहीं रहा होगा। कभी जवान नहीं हुआ होगा। चित्त के जो वार्धक्य के, ' ओल्डनेसके जो लक्षण हैंवे पहले दिन से ही उसमें प्रविष्ट हो गये होंगे। लेकिन लाओत्से बूढ़ा पैदा हुआ हो या न हुआ होआज जो मनुष्यता हमारे सामने हैवह बूढ़ी ही पैदा होती है। हमने बूढे होने के सूत्र पकड़ रखे हैं।
      और इसके पहले मैं कहूं कि युवा चित्त का जन्म कैसे होमैं इस भाषा में कहूंगा कि चित्त बूढ़ा कैसे हो जाता है;क्योंकि बहुत गहरे में चित्त का बूढ़ा होनामनुष्य की चेष्टा से होता है।
      चित्त अपने आप में सदा जवान है। शरीर की तो मजबूरी है कि वह बूढा हो जाता हैलेकिन चेतना की कोई मजबूरी नहीं है कि वह बूढ़ी हो जाये। चेतना युवा ही है। 'माइंडतो 'यंगही है। वह कभी का नहीं होतालेकिन अगर हम व्यवस्था करेंतो उसे भी बूढ़ा बना सकते हैं।
      इसलिए जवान चित्त कैसे पैदा हो, 'यंग माइंडकैसे पैदा होयह सवाल उतना महत्वपूर्ण नहीं हैजितना गहरे में सवाल यह है कि चित्त को बूढ़ा बनाने की तरकीबों से कैसे बचा जाये। अगर हम चित्त को बूढ़ा बनाने की तरकीबों से बच जाते हैंतो जवान चित्त अपने—आप पैदा हो जाता है।
चित्त जवान है ही। चित्त कभी का होता ही नहीं। वह सदा ताजा है। चेतना सदा ताजी है। चेतना नयी हैरोज नयी है।
      लेकिन हमने जो व्यवस्था की हैवह उसे रोज बूढ़ा और पुराना करती चली जाती है। तो पहले मैं समझाना चाहूंगा कि चित्त के बूढ़ा होने के सूत्र क्या हैं :
      पहला सूत्र है फियरभय। जिस चित्त में जितना ज्यादा भय प्रविष्ट हो जायेगावह उतना ही 'पैरालाइब्दऔर 'क्रिपल्डहो जायेगा। वह उतना ही बूढा हो जायेगा।
      और हमारी पूरी संस्कृति—आज तक के मनुष्य की पूरी संस्कृतिभय पर खड़ी हुई है।
      हमारा तथाकथित सारा धर्म भय पर खड़ा हुआ है। हमारे भगवान की मूर्तियां हमने भय के कारखाने में डाली हैं। वहीं वे निर्मित हुई है। हमारी प्रार्थनाएं हमारी पूजाएं— थोड़ा हम भीतर प्रवेश करेंतो भय की आधारशिलाओं पर खड़ी हुई मिल जायेंगी। हमारे संबंधहमारा परिवारहमारे राष्ट्रबहुत गहरे मेंभय पर खड़े ?? परिवार निर्मित हो गये हैंलेकिन पति भयभीत है! पुरुष भयभीत है! सी भयभीत है! बच्चे भयभीत हैं! साथ खड़े हो जाने से भय थोड़ा कम मालूम होता है।
संप्रदायसंगठन खड़े हो गये हैं भय के कारण! राष्ट्रदेश खड़े हैं भय के कारण!
      हमारी जो भी आज तक की व्यवस्था हैवह सारी व्यवस्था भय पर खड़ी है। एक—दूसरे से हम भयभीत हैं। दूसरे से ही नहींहम अपने से भी भयभीत हैं।
      इस भय के कारणचित्त का युवा होना कभी संभव नहीं हैक्योंकि चित्त तभी युवा होता हैजब अभय हो। खतरे और जोखिम उठाने में समर्थ हो। जो जितना ही भयभीत हैवह खतरे में उतना ही प्रवेश नहीं करता है। वह सुरक्षा का रास्ता लेता है, 'सिक्योरिटीका रास्ता लेता है। जहां कोई खतरे न होंवह रास्ता लेता है।
      और सिर्फ उन्हीं रास्तों पर खतरा नहीं मालूम होता हैजो हमारे परिचित हैं। जिन पर हम बहुत बार गुजरकर गये हैं। तो बूढ़ा मनुष्यकोल्हू के बैल की तरह एक ही रास्ते पर घूमता रहता है। रोज सुबह वहीं उठता हैजहां कल सांझ सोया था! रोज वही करता हैजो कल किया था! रोज वही—जो कल थाउसी में जीने की कोशिश करता है! नये से डरता है। नये में खतरा भी हो सकता है। भयभीत चित्त बूढ़ा होता है। और भय हमारे पूरे प्राणों को किस बुरी तरह मार डालता हैयह हमें पता नहीं है।
      मैंने सुना हैएक गांव के बाहर एक फकीर का झोपड़ा था। एक सांझ अंधेरा उतरता था। फकीर झोपड़े के बाहर बैठा है। एक काली छाया उसे गांव की तरफ भागती जाती मालूम पड़ी। रोका उसने उस छाया को! पूछा, तुम कौन होऔर कहां जाती होउस छाया ने कहामुझे पहचाना नहींमैं मौत हूं और गांव में जा रही हूं। प्लेग आने वाला है। गांव में मेरी जरूरत पड गयी है।
      उस फकीर ने पूछाकितने लोग मर गये हैंकितने लोगों के मरने का इंतजाम हैकितने की योजना हैउस मौत की काली छाया ने कहाबस! हजार लोग ले जाने हैं।
      मौत चली गयी। महीना भर बीत गया। गांव में प्लेग फैल गया। कोई पचास हजार आदमी मरे। दस लाख की नगरी थी। कुल पचास हजार आदमी मर गए।
      फकीर बहुत हैरान हुआ कि आदमी धोखा देता था। यह मौत भी धोखा देने लगीमौत भी झूठ बोलने लगा! और मौत क्यों झूठ बोलेक्योंकि आदमी झूठ बोलता है डर के कारण! मौत किससे डरती होगीकि झूठ बोले। मौत को तो डरने का कोई कारण नहींक्योंकि मौत ही डरने का कारण हैतो मौत को क्या डर हो सकता हैफकीर बैठा रहा कि मौत वापस लौटेतो पूछ लूं। महीने भर के बाद मौत वापस लौटी। फिर रोका और कहा कि बड़ा धोखा दिया। कहा थाहजार लोग मरेंगे,पचास हजार लोग मर चुके हैं।
      मौत ने कहामैंने हजार ही मारे हैंबाकी भय से मर गये हैं। उनसे मेरा कोई संबंध नहीं है। वे अपने—आप मर गये हैं।
      और भय से कोई आदमी बिलकुल मर जायेबड़ा खतरा नहीं हैलेकिन भय से हम भीतर मर जाते हैंऔर बाहर जीते चले जाते हैं। भीतर लाश हो जाती हैबाहर जिंदा रह जाते हैं। भीतर सब 'डेड—वेटहो जाता है—मुर्दामरा हुआ। और बाहर हमारी आंखें ,हाथ—पैर चलते हुए मालूम पड़ते हैं।
      बूढ़े होने का मतलब यह है कि जो आदमी भीतर से मर गया हैसिर्फ बाहर से जी रहा है। जिसका जिंदगी सिर्फ बाहर है। भीतर जो मर चुका हैवह आदमी बूढ़ा है।
      यह हो सकता हैकि एक आदमी बाहर से बूढ़ा हो जाये। शरीर पर झुर्रईयां पड़ गयी हैंऔर मृत्यु के चरण—चिह्न दिखायी पड़ने लगे हैं। मृत्यु की पग— ध्वनियां सुनायी पड़ने लग गयी हैं। और भीतर से जिंदा होजवान होउस आदमी को बूढ़ा कहना गलत है। बूढ़ाशारीरिक मापदण्‍ड से नहीं तौला जा सकता है। बुढ़ापा तौला जाता हैभीतर कितना मृत हो गया हैउससे। कुछ लोग बूढ़े ही जीते हैंजन्मते हैंऔर मरते हैं!
      कुछ थोड़े—से सौभाग्यशाली लोग युवा जीते हैं। और जो युवा होकर जी लेता हैवह युवा ही मरता है। वह मौत के आखिरी क्षण में भी युवा होता है। मृत्यु उसे छीन नहीं पाती। क्योंकि जिसे बुढ़ापा ही नहीं छू पाता हैउसे मृत्यु कैसे छू पायेगी। लेकिन संस्कृाति हमारीभय को ही प्रचारित करती है। हजार तरह के भय खड़े करती है।
      सारे पुराने धर्मों ने ईश्वर का भय सिखाया है। और जिसने भी ईश्वर का भय सिखाया हैउसने पृथ्वी पर अधर्म के बीज बोये हैं। क्योंकि भयभीत आदमी धार्मिक हो ही नहीं सकता। भयभीत आदमी धार्मिक दिखायी पड़ सकता है।
      भय से कभी किसी व्यक्ति के जीवन में क्रांति हुई हैरूपांतरण हुआ हैपुलिस वाला चौरास्ते पर खड़ा हैइसलिए मैं चोरी न करूंतो मैं अच्छा आदमी हूं! पुलिस वाला हट जायेतो मेरी चोरी अभी शुरू हो जाये।
      अगर पका पता चूल जाये कि ईश्वर मर गया है—उसकी खबरें तो बहुत आती हैंलेकिन पका नहीं हो पाता कि ईश्वर मर गया है। तो जिसको हम धार्मिक आदमी कहते हैंवह एक क्षण में अधार्मिक हो जाये। अगर इसकी गारंटी हो जाये कि ईश्वर मर गया हैतो जिसको हम धार्मिक आदमी कहते हैंमंदिर कभी न जाये। फिर सचाईसत्य और गीता और कुरान और बाइबिल की बातें वह भूलकर भी न करें। वह फिर टूट पड़े जीवन परपागल की तरह! उसने भगवान को एक बहुत बड़ा सुप्रीम कांस्टेबल की तरह समझा हुआ है। हैड कांस्टेबलसबके ऊपर बैठा हुआ पुलिसवालावह उसको डराये हुए है।
      पुराना शब्द है 'गॉड—फियरिग', ईश्वर— भीरू! धार्मिक आदमी को हम कहते हैं—ईश्वर भीरू!
      परसों मैं एक मित्र के घर था बड़ौदा मेंउन्होंने कहामेरे पिता बहुत 'गॉड फीयरिगहैंबड़े धार्मिक आदमी हैं। सुन लिया मैंने! लेकिन 'गॉड—फियरिगधार्मिक कैसे हो सकता है? 'गॉड—लविंग', ईश्वर को प्रेम करने वाला धार्मिक हो सकता है। ईश्वर से डरने वाला कैसे धार्मिक हो सकता है?
और ध्यान रहेजो डरता हैवह प्रेम कभी नहीं कर सकता है। जिससे हम डरते हैंउसको हम प्रेम कर सकते हैंउसको हम घृणा कर सकते हैंप्रेम नहीं कर सकते! हांप्रेम दिखा सकते हैं। भीतर होगी घृणाबाहर दिखायेंगे प्रेम! प्रेम एक्टिंग होगाअभिनय होगा!
      जो भगवान से डरा हुआ हैउसकी प्रार्थना झूठी है। उसके प्रेम की सब बातें झूठी हैं। क्योंकि जिससे हम डरे हैंउससे प्रेम असंभव है। उससे प्रेम का संबंध पैदा ही नहीं होता है।
      कभी आपको खयाल हैजिससे आप डरे हैंउसे आपने प्रेम किया हैलेकिन यह भ्रांति गहरी है। वह ऊपर बैठा हुआ पिता भी इस तरह पेश किया गया है कि उससे हम डरे हैं। नीचे भी जिसको हम पिता कहते हैंमां कहते हैंगुरु कहते हैंवे सब डरा रहे हैं। और सब सोचते हैं कि डर से प्रेम पैदा हो जाये।
      बापबेटे को डरा रहा है। डराकर सोच रहा है कि प्रेम पैदा होता है। नहीं! दुश्मनी पैदा हो रही है। हर बेटाबाप का दुश्मन हो जायेगा। जो बाप भी बेटे को डरायेगादुश्मनी पैदा हो जाना निश्‍चित है। और बेटा आज नहीं कलबदले में बाप को डरायेगा। थोड़ा वक्त लगेगाथोड़ा समय लगेगा। बाप जब बूढ़ा हो जायेगाबेटा जब जवान होगातो बाप ने जब जवान था और बेटा जब बच्चा थाजिस भांति डराया थापहलू बदल जायेगाअब बेटा बाप को डरायेगा! और बाप चिल्लायेगा बेटे बिलकुल बिगड़ गये हैं!
      बेटे कभी नहीं बिगड़ते। पहले बाप को बिगड़ना पडता है। तब बेटे बिगड़ते हैं।
      बाप पहले बिगड़ गया। उसने बचपन में बेटे के साथ वह सब कर लिया हैजो बेटे को बुढ़ापे में उसके साथ करना पड़ेगा। सब चक्के घूमकर अपनी जगह आ जाते हैं।
      अगर भय हमने पैदा किया है तो परिणाम में भय लौटेगाघृणा लौटेगीदुश्मनी लौटेगी। प्रेम नहीं लौटता।
      और हमने जो ईश्वर बनाया थावह भय का साकार रूप था। भय ही भगवान था। स्वाभाविक रूप से आदमी उससे डरा। डरकर धार्मिक बना तो धार्मिकता झूठी ही थोपी! एकदम ऊपरी। भीतर भय था। भीतर डर था। आज एक युवती ने मुझे आकर कहा कि बचपन से मुझे ऐसा लगता है कि ईश्वर मुझे मिल जाये तो उसे मार डालूं। मैंने कहायह सब खयाल है तेरे मन मेंलेकिन जो भी डराने वाला हैउसको मारने का खयाल हमारे मन में पैदा होगा ही। उस युवती को ठीक ही खयाल पैदा हुआ है। हिम्मत हैउसने कह दिया है। हममें हिम्मत नहीं हैहम नहीं कहते। वैसे हर आदमी इस खोज में है कि ईश्वर को कैसे खत्म कर देंकैसे मार डालें।
      दोस्तोवस्की ने अपने उपन्यास में कहा है कि अगर ईश्वर न हो, 'देन एवरी थिंग इज कमिटेड'। एक बार पका हो जायेईश्वर नहीं है तो हर चीज की आज्ञा मिल जाये। फिर हमें जो करना हैहम कर सकते हैं। फिर कोई डर न रह जाय। वही तो निश्‍चित है। बाद में उसने कहा कि तुम छोड़ दो भय। खबर नहीं मिली तुम्हें—गॉड इज नाउ डैडमैन इज फ्रीईश्वर मर चुका है और आदमी मुक्त है!
      ईश्वर बंधन था कि उसके मरने से आदमी मुक्त होगाइसमें ईश्वर का कसूर नहीं है। इसमें धर्म के नाम पर जो परंपराएं बनींउन्होंने भय का बंधन बना दिया था। जरूरी हो गया था कि ईश्वर के बेटे किसी दिन उसे कत्ल कर दें।
      आज दूनिया भर के बेटे ईश्वर का कत्‍ल कर दे रहे हैं। रूस ने कत्ल किया हैचीन ने कत्ल किया हैहिन्दुस्तान में भी कत्ल करेंगे। बचाना बहुत मुश्किल है। नक्सलवादी ने शुरू किया हैबंगाल में शुरू किया है। गुजरात थोड़ा पीछे जायेगा। थोड़ा गणित बुद्धि का हैथोड़ी देर मेंलेकिन आयेगाबच नहीं सकता।
      ईश्वर पृथ्वी के कोने—कोने में कत्‍ल किया जायेगा। उसका जिम्मा नास्तिकों का नहीं होगागौर रखना। उसका जिम्मा उनका होगाजिन्होंने ईश्वर के साथ भय को जोड़ा हैप्रेम को नहीं। इसके लिए जिम्मेदार तथाकथित धार्मिक लोग होंगे—वे चाहे हिंदु होंचाहे मुसलमान होंचाहे ईसाई होंइससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जिन्होंने भीमनुष्य—जाति के मन में ईश्वर और भय का एसोसिएशन करवा दिया हैदोनों को जुड़वा दिया हैउन्होंने इतनी खतरनाक बात पैदा की है कि आदमी के धार्मिक होने में सबसे बडी बाधा बन गयी है। या तो ईश्वर को भय से मुक्त करो—या ईश्वर आदमी को बूढ़ा करने और मारने का कारण हो गया है—क्योंकि भय बूढ़ा करता है और मारता है।
      और ध्यान रहेचीजें संयुक्त हो जाती हैं। विपरीत चीजें भी संयुक्त हो सकती हैं। मन के नियम हैं। अब भय से भगवान का कोई संबंध नहीं है। अगर इस पृथ्वी परइस जगत मेंइस जीवन में कोई एक चीज हैजिससे निर्भय हुआ जा सकता है तो वह भगवान है। कोई एक तत्व हैजिससे निर्भय हुआ जा सकता है पूरातो वह परमात्मा हैक्योंकि बहुत गहरे में हम उसकी ही किरणें हैंउसके ही हिस्से हैं। उसके ही भाग हैंउससे ही लगे हैं। उससे भय का सवाल क्या हैउससे भयभीत होना अपने से भयभीत होने का मतलब रखेगा। लेकिन हम जोड़ सकते हैं चीजों को।
      पावलव ने रूस में बहुत प्रयोग किये हैं एसोसिएशन परसंयोग पर। एक कुत्ते को पावलव रोज रोटी खिलाता है। रोटी सामने रखता हैकुत्ते की लार टपकने लगती है। फिर रोटी के साथ वह घंटी बजाता है। रोज रोटी देता हैघंटी बजाता है। रोटी देता हैघंटी बजाता है। पन्द्रह दिन बाद रोटी नहीं देता हैसिर्फ घंटी बजाता है। और कुत्ते की लार टपकनी शुरू हो जाती है! अब घंटी से लार टपकने का कोई भी संबंध कभी सुना हैघंटी बजने से कुत्ते की लार टपकने का क्या संबंध है?
      कोई भी संबंध नहीं है। तीन काल में कोई संबंध नहीं है। लेकिन एसोसिएशन हो जाता है। रोटी के साथ घंटी जुड़ गयी। जब रोटी मिली तब घंटी बजीजब घंटी बजी तब रोटी मिली। रोटी और घंटी मन में कहीं एक साथ हो गयीं। अब सिर्फ घंटी बज रही हैलेकिन रोटी का खयाल साथ में आ रहा है और तकलीफ शुरू हो गयी है।
      मनुष्य कुछ खतरनाक संयोग भी बना सकता है। भगवान और भय का संयोग ऐसा ही खतरनाक है। पावलव का प्रयोग बहुत खतरनाक नहीं है। घंटी और रोटी में संबंध हो जायेहर्ज क्या हैलेकिन भगवान और भय में संबंध हो जाये तो मनुष्यता बूढ़ी हो जायेगी।
      अतीत का मनुष्य बूढ़ा मनुष्य था। अतीत का इतिहास वृद्ध मनुष्यता का इतिहास है, ' ओल्ड माइंड का'। बूढ़े मन का इतिहास हैक्योंकि वह भय पर खड़ा हुआ है।
      धर्म... भय पर खड़े हुए मंदिर हैंहाथ जोड़े हुए भयभीत लोग! यह फासलाभयडरकि भगवान मिटा देगा! वह तो तैयार बैठा हुआ है। भगवान तैयार बैठा हुआ है आदमियों को सताने कोडराने को। आदमी जरा ही इंकार करेगा और भगवान बर्बाद कर देगाऔर नरकों में सड़ा देगा।
      नरक के कैसे—कैसे भय पैदा हमने किये हैं भगवान के साथकैसे अदभुत भय पैदा किये हैंक्रिमिनल माइंड भी,अपराधी से अपराधी आदमी भी ऐसी योजना नहीं बना सकता है जैसीजिन्हें हम ऋषि—मुनि कहते हैंउन्होंने नरक की योजना बनायी है! नरक की योजना देखने लायक है। और ध्यान रहेनरक की योजना कोई बहुत सौंदर्य कोसत्य कोप्रेम कोपरमात्मा को खयाल में रखने वाला बना नहीं सकता है। यह असंभव है कि अगर वास्तव में परमात्मा हो तो नरक भी हो सके। ये दोनों बातें एक साथ संभव नहीं हैं। या तो परमात्मा नहीं होगातो नरक हो सकता है। और अगर नरक हैतो फिर परमात्मा को विदा करो। वह नहीं हो सकता है। ये दोनों चीजें एक साथ संभव नहीं हैं। उनका को—इग्जिसूटेंस नहीं हो सकता है। उनका सह—अस्तित्व संभव नहीं है।
      नरक की क्या—क्या योजना हैसोचा है आपने कभीकितना डराया होगा आदमी कोऔर आदमी इतना कम जानता था कि डराया जा सकता है। इतना कम जानता था कि घबड़ाया जा सकता है। आदमी एक अर्थ में अबोध था। वह बहुत भयभीत किया जा सकता था।
      हर मुल्क को नरक की अलग—अलग कल्पना करनी पड़ी। क्योंक्योंकि हर मुल्क में भय का अलग—अलग उपाय खोजा गया है। स्वाभाविक था। कुछ चीजेंजिनसे हम भयभीत हैंदूसरे लोग भयभीत नहीं हैं। जैसे तिब्बत में ठंड भय पैदा करती हैहिन्दुस्तान में पैदा नहीं करती। ठंड अच्छी लगती है। तो हमारे नरक में ठंड का बिलकुल इन्तजाम नहीं है। हमारे नरक में आग जल रही है और धूप और गर्मी हमें परेशान करती हैभयभीत करती है। और हमने नरक में आग के अखंड क्यूं जला रखे हैं! यज्ञ ही यज्ञ हो रहे है नरक में! आग ही आग जल रही है और अनंत काल से उसमें घी डाला जा रहा होगा! भड़कती ही चली जा रही है। और उस आग का कभी बुझना नहीं होगा। वह इटर्नल फायर हैऔर वह कभी बुझती नहीं है,अनंत आग है। और उसमें पापियों को डाला जा रहा हैसड़ाया जा रहा है। मजा एक है कि कोई मरेगा नहीं उस आग में डालने सेक्योंकि मर गये तो दुख खल हो जायेगा। इंतजाम यह हैआग में डाले जायेंगे। जलेंगे सडेंगेगलेंगेमरेंगे भर नहीं। जिंदा तो रहना ही पड़ेगा।
      नरक में कोई मरता नहीं हैखयाल रखना!
      क्योंकि मरना भी एक राहत हो सकती हैकिसी स्थिति में। मरना भी कंफर्टेबल हो सकता है किसी हालात में। किसी क्षण में आदमी चाह सकता हैमर जाऊं!
      वहां कोई आत्महत्या नहीं कर सकता है। पहाड़ से गिरोगर्दन टूट जायेगीआप बच जाओगे। फांसी लगाओगला कट जायेगाआप बच जाओगे। छुरा मारोछुरा घुप जायेगाआप बच जाओगे। जहर पियोफोड़े—फुंसिया पैदा हो जायेंगीजहर उगाने लगेगा शरीरलेकिन आप नहीं मरोगे। नरक में आत्महत्या का उपाय नहीं है! आग जल रही हैजिसे हम जला रहे हैं।
      तिब्बत में... और तिब्बत के नरक में आग नहीं जलतीक्योंकि तिब्बत में अण बड़ी सुखद है। तो तिब्बत में आग की जगह शाश्वत बर्फ जमा हुआ हैजो कभी नहीं पिघलता है! वह बर्फ में दबाये जायेंगेतिब्बत के पापी। वह बर्फ में दबाया जायेगा। तिब्बत के स्वर्ग में आग है। सूरज चमकता है तेज धूप हैबर्फ बिलकुल नहीं जमती। हिन्दुस्तान के स्वर्ग बिलकुल एयरक्कीशंड हैवातानुकूलित है। शीतल मंद पवन हमेशा बहती रहती है। कभी ऐसा नहीं होता कि ठंडक में कमी आती है। ठंडक ही बनी रहती है। सूरज भी निकलता है तो किरणें तपाने वाली नहीं हैबड़ी शीतल हैं।
      दुखभयआदमी को नरक कापापों कापापों के कर्मों का.. लंबे—लंबे भयहमने मनुष्य के मानस में निर्धारित किये हैं! और किसलिएयह आदमी धार्मिक हैयह आदमी धार्मिक नहीं हुआसिर्फ बूढ़ा हो गया है। सिर्फ वृद्ध हो गया है। इतना भयभीत हो गया है कि वृद्ध हो गया है। भय बड़ी तेजी से वार्धक्य लाता है।
      यहां तक घटनाएं संग्रहीत की गयी हैं कि एक आदमी को कोई तीन सौ वर्ष पहले हालैंड में फांसी की सजा दी गयी। वह आदमी जवान था। जिस दिन उसे फांसी की सजा सुनायी गयीसांझ वह जाकर अपनी कोठरी में सोया। सुबह उठकर पहरेदार उसे पहचान न सके कि यह आदमी वही है। उसके सारे बाल सफेद हो गये हैं! उसके चेहरे पर झुर्रियां पड़ गयी हैंवह आदमी बूढ़ा हो गया है!
      ऐसी कुछ घटनाएं इतिहास में संग्रहीत हैंजब आदमी क्षण भर में बूढ़ा हो गया हो। इतनी तेजी से! भयभीत अगर हो गया होगातो हो सकता है। जो रस स्रोत तीस वर्ष में सूखतेवह भय के क्षण मेंएक ही क्षण में सूख गये हों। कठिनाई क्या हैनिश्‍चितबाल सफेद होंगे ही। तीस—चालीस वर्षपचास वर्ष समय लगता है उनके बाल सफेद होने में। यह हो सकता है कि इतनी तीव्रता से भय ने पकड़ा हो कि भीतर के जिन रस स्रोतों से बालों में कालिख आती होवे एक ही भय के धक्के में सूख गये हों। बाल सफेद हो गये हों।
      आदमी एक क्षण में बूढ़ा हो सकता हैभय से।
      और अगर दस हजार साल की पूरी संस्कृति भय पर ही खड़ी है। सिवाय भय के कोई आधार ही न होतो अगर आदमी का मन बूढ़ा हो जायेतो आश्चर्य  नहीं है।
      जिसे बूढ़ा होना होउसे भय में दीक्षा लेनी चाहिए। उसे भय सीखना चाहिएउसे भयभीत होना चाहिए।
      यूरोप में ईसाइयों के दो संप्रदाय थे—एक तो अब भी जिन्दा हैक्वेकर। क्वेकर का मतलब होता हैकैप जाना। जमीन कंप जाती है। क्वेकर का मतलब होता हैकंप जाना।
      क्वेकर संप्रदाय का जन्म ऐसे लोगों से हुआ हैजिन्होंने लोगों को इतना भयभीत कर दिया—कि उनकी सभा में लोग कंपने लगते हैंगिर जाते हैं और बेहोश हो जाते हैं। इसलिए इस संप्रदाय का नाम क्वेकर हो गया। एक और संप्रदाय था,जिसका नाम था शेकर। वह भी कंपा देता था। जान बकेले जब बोलता था तो स्त्रियां बेहोश हो जाती थींआदमी गिर पड़ते थेलोग कांपने लगते थेलोगों के नथुने फूल जाते थे। क्या बोलता थानरक के चित्र खींचता था। साफ चित्र। और लोगों के मन में चित्र बिठा देता था। और डर बिठा देता था। वे सारे लोग हाथ जोड़कर कहते थे कि हमें प्रभु ईसा के धर्म में दीक्षित कर दो। डर गये।
      इसलिए जितने दुनिया में धर्म नये पैदा होते हैंवे घबराते हैं कि दुनिया का अंत जल्दी हौने वाला है। बहुत शीघ्र दुनिया का अंत आने वाला है। सब नष्ट हो जायेगा। जो हमें मान लेंगेवही बच जायेंगे। घबड़ाहट में लोग उन्हें मानने लगते है।
      अभी भी इस मुल्क में कुछ संप्रदाय चलते हैंजो लोगों को घबराते है कि जल्दी सब अंत होने वाला है। सब खतम हो जायेगा। और जो हमारे साथ होंगेवे बच जायेंगेशेष सब नरक में पड़ जायेंगे।
      सब धर्म यही कहते हैं कि जो हमारे साथ होंगेवे बच जायेंगेबाकी सब नरक में पड़ जायेंगे। अगर उन सब की बातें सही हैं तो एक भी आदमी के बचने का उपाय नहीं दिखता है। जीसस को नरक में जाना पड़ेगाक्योंकि जीसस हिन्दू नहीं हैं,जैन नहीं हैंबौद्ध नहीं हैं। महावीर को भी नरक में पड़ना पड़ेगाक्योंकि महावीर ईसाई नहीं हैंबौद्ध नहीं हैंहिन्दू नहीं हैं,मुसलमान नहीं हैं। बुद्ध को भी नरक में पडना पड़ेगाक्योंकि वह हिन्दू नहीं हैंईसाई नहीं हैंजैन नहीं हैं। दूनिया के सब धर्म कहते हैं कि हम सिर्फ बचा लेंगेबाकी सब डुबा देंगे। उस घबराहट में ठीक से— भय शोषण का उपाय बन गया है।
      भयभीत करोआदमी शोषित हो जाता है।
      भयभीत कर दो आदमी कोफिर वह होश में नहीं रह जाता है। फिर वह कुछ भी स्वीकार कर लेता है। डर में वह इनकार नहीं करता। भयभीत आदमी कभी संदेह नहीं करता और जो संदेह नहीं करता हैवह का हो जाता है। 
      जो आदमी संदेह कर सकता हैवह सदा जवान है।
      जो आदमी भयभीत होता हैवह विश्वास कर लेता है, 'बिलीवकर लेता हैमान लेता है कि जो हैवह ठीक है। क्योंकि इतनी हिम्मत जुटानी कठिन है कि गलत है। बूढ़ा आदमी विश्वासी होता है। युवा सिर्फ निरंतर संदेह करता है—खोजता हैपूछता हैप्रश्र करता है।
      यह ध्यान रहेयुवा चित्त से विज्ञान का जन्म होता है और बूढ़े चित्त से विज्ञान का जन्म नहीं होता है।
      जिन देशों में जितना भय और जितना वार्धक्य लादा गया हैउन देशों में वितान का जन्म नहीं हो सकाक्योंकि विचार नहींसन्देह नहींप्रश्न नहींजिज्ञासा नहीं!
      क्या हम सब भयभीत नहीं हैंक्या हम सब भयभीत होने के कारण सारी व्यवस्था को बांधे हुए, 'पकड़े हुए नहीं खड़े हैंक्या हम सब डरे हुए नहीं हैं?
      अगर हम डरे हुए हैं तो यह संस्कृति और यह समाज सुंदर नहीं हैजिसने हमें डरा दिया है। संस्कृति और समाज तो तब सुंदर और स्वस्थ होगाजब हमें भय से मुक्त करेहमें अभय बनाये। अभय, 'फियरलेसनेस', निर्भय नहीं। निर्भय और अभय में बडा फर्क है। फर्क हैयह समझ लेना जरूरी है।
      भयभीत आदमीभीतर भयभीत है और बाहर से अकड़कर डर इनकार करने लगेतो वह निर्भय होता है। भय शांत नहीं होता है उसके भीतर। वह बहादुरी दिखायेगा बाहर सेभीतर भय होगा। जिनके हाथ में भी तलवार हैवे कितने भी बहादुर होंवे भयभीत जरूर रहे होंगेक्योंकि बिना भय के हाथ में तलवार का कोई भी अर्थ नहीं है। जिनके भी हाथ में तलवार हैचाहे उनकी मूर्तियां चौरस्ते पर खड़ी कर दी गयी होंऔर चाहे घरों में चित्र लगाये गये होंवे घोड़े पर बैठे हुए—तलवारें हाथ में लिए हुए लोगभयभीत लोग हैं। भीतर भय है। तलवार उनकी सुरक्षा है— भय की।
      और ध्यान रहेजो आदमी निर्भय हो जायेगावह दूसरे को भयभीत करने के उपाय शुरू कर देगा। क्योंकि भीतर उसके भय हैवह डरा हुआ है। मैक्यावेलि ने कहा हैडिफेंस कासुरक्षा का एक सबसे अच्छा उपाय आक्रमण है, 'अटैकहै। प्रतीक्षा मत करो कि दूसरा आक्रमण करेगातब हम उत्तर देंगे। आक्रमण कर दोताकिदूसरे को आक्रमण का मौका न रहे।
      जितने लोग आक्रामक हैंएग्रेसिव हैंसब भीतर से भय से भरे हुए हैं। भयभीत आदमी हमेशा आक्रामण होगाक्योंकि वह डरता है। इसके पहले कि कोई मुझ पर हमला करेमैं हमला कर दूं। पहला मौका मुझे मिल जाये। हमला हो जाने के बादकहा नहीं जा सकता हैक्या होइसलिए भयभीत आदमी हमेशा तलवार लिए हुए है। वह कवच बांधे हुए मिलेगा। कवच बहुत तरह के हो सकते हैं। एक आदमी कह सकता है कि मैं तो भगवान में विश्वास करता हूं। मुझे कोई डर नहीं है। मैं तो भगवान का सहारा मांगता हूं। यह भी कवच बनाया है भगवान कातलवार बना रहा है भगवान को। भगवान की तलवारें मत डालो। भगवान कोई लोहा नहीं है कि तलवारें ढाली जा सकें और कवच बनाया जा सके।
      वह आदमी कहता हैमुझे कोई डर नहीं है। रोज मैं हनुमान चालीसा पढ़ता हूं। वह हनुमान चालीसा को ढाल बना रहा है। और भीतर भयभीत है। और भयभीत आदमी कितना ही हनुमान चालीसा पढ़े.. तो हनुमान फिर पूछते होंगे कि कई दिनों से यह पागल क्या कर रहा हैभयभीत आदमी कितनी ही कवच उपलब्ध कर लेंमृत नहीं मिटता है। निर्भय भी भय करने लगेगा और दिखाने की कोशिश करेगा कि मैं किसी से भयभीत नहीं हूं। जो भी आदमी दिखाने की कोशिश करे कि मैं किसी से भयभीत नहीं हूं जान लेना कि दिखाने की कोशिश में भीतर भय उपस्थित है। अभय बिलकुल और बात है।
      अभय का मतलब हैभय का विसर्जित हो जाना।
      अभय का मतलबभय का विसर्जन। निर्भय नहीं हो जाना है। अभय का मतलब हैभय का विसर्जित हो जाना। सिर्फ अभय को जो उपलब्ध हुआ होवही व्यक्ति अहिंसक हो सकता है। निर्भय व्यक्तिअहिंसक नहीं हो सकता। भीतर भय काम करता ही रहेगा। और भय सदा हिंसा की मांग करता रहेगा। भय सदा सुरक्षा चाहेगा। सुरक्षा के लिए हिंसा का आयोजन करना पड़ेगा।
आज तक का पूरा समाज हमारा हिंसक समाज रहा है।
      अच्छे लोग भी हिंसक रहे हैंबुरे लोग भी हिंसक रहे हैं।
      इस धर्म के मानने वाले भी हिंसक हैंउस धर्म के मानने वाले भी हिंसक हैं। इस देश केउस देश केसारी पृथ्वी हिंसक रही है।
      सारी पृथ्वी का पूरा इतिहास हिंसा और युद्धों का इतिहास है।
      नाम हम कुछ भी देते होंनाम गौण है। जैसे कोई आदमी अपने कोट को खूंटी पर टांग दे। खूंटी गौण हैअसली सवाल कोट है। यह खूंटी न मिलेगीदूसरी खूंटी पर टागेगा। दूसरी न मिलेगीतीसरी खूंटी पर टांगेगा। खूंटी से कोई मतलब नहीं है।
      हजार खूंटियों पर आदमी अपनी हिंसा टांगता रहा है। धर्म की खूंटी पर भी हिंसा टांग देता हैआश्रर्य की बात है। हिन्दू—मुसलमान लड़ पड़ते हैंहिंसा हो जाती है। धर्म की खूंटी पर युद्ध टांगता है। धर्म की खूंटी पर युद्ध टैग सकता है। भाषा की खूंटी पर युद्ध याता रहता है। राष्ट्रों के चुनाव पर युद्ध टैग जायेगा।
      कोई भी बहाना चाहिए आदमी को लड़ने का।
      आदमी को लड़ने का बहाना चाहिएक्योंकि आदमी भय से भरा है।
      और जब तक आदमी भय से भरा हैतब तक वह लड़ने से मुक्त नहीं हो सकता। लड़ना ही पड़ेगा। लड़ने से वह अपनी हिम्मत बढ़ाता है।
      कभी देखा हैअंधेरी गली में कोई जाता हो तो जोर से गीत गाने लगता है! समझ मत रखना कि कोई गीत गा रहा है अन्दर। सिर्फ गीत गाकर भुला रहा है अपने भय को। सीटी बजाने लगाता है आदमी अंधेरे में! ऐसा लगता है कि सीटी से बहुत प्रेम है। सीटी बजाकर भुला रहा हैभीतर के भय को। हजार उपाय हम उपयोग करते हैं भीतर के भय को भुलाने के,लेकिन भीतर का भय मिटता नहीं।
      मैंने सुना हैचीन में एक बहुत बड़ा फकीर था। उसकी बड़ी ख्याति थी। दूर—दूर तक ख्याति थी कि वह अभय को उपलब्ध हो गया है। 'फियरलेसनेसको उपलब्ध हो गया है। वह भयभीत नहीं रहा है। यह सबसे बड़ी उपलब्धि है। क्योंकि जो आदमी अभय को उपलब्ध हो जायेगा वह ताजाजवान चित्त पा लेता है। और ताजाजवान चित्त फौरन परमात्मा को जान लेता हैसत्य को जान लेता है।
      सत्य को जानने के लिए चाहिए ताजगी, 'फ्रेशनेस', जैसे सुबह के फूल में होती हैजैसे सुबह की पहली किरण में होती है।
      और बूढ़े चित्त में—सिर्फ सड़ गयेगिर गये फूलों की दुर्गंध होती है और विदा हो गयी किरणों के पीछे का अंधेरा होता है। ताजा चित्त चाहिए।
      तो खबर मिलीदूर—दूर तक खबर फैल गयी कि फकीर अभय को उपलब्ध हो गया है। एक युवक संन्यासी उस फकीर की खोज में गया जंगल में—घने जंगल मेंजहां बहुत भय थावह फकीर वहां रहता था। जहां शेर दहाड़ करते थेजहां पागल हाथी वृक्षों को उखाड़ देते थेउनके ही बीचचट्टानों पर हीवह फकीर पड़ा रहता था। और रात जहां अजगर रेंगते थेवहां वह सोया रहता था निश्‍चित। युवक संन्यासी उसके पास गया। उसी चट्टान के पास बैठ गया। उससे बात करने लगातभी एक पागल हाथी दौड़ता हुआ निकला पास से। उसकी चोटों से पत्थर हिल गये। वृक्ष नीचे गिर गये। वह युवक कंपने लगा खड़े होकर। उस बूढ़े संन्यासी के पीछे छिप गयाउसके हाथ—पैर कंप रहे हैं।
      वह बूढ़ा संन्यासी खूब हंसने लगा और उसने कहातुम अभी डरते होतो संन्यासी कैसे हुएक्योंकि जो डरता है,उसका संन्यास से क्या संबंधहालांकि अधिक संन्यासी डरकर ही संन्यासी हो जाते हैं। पत्नी तक से डरकर आदमी संन्यासी हो जाते हैं। और डर की बात दूर है—बड़े डर तो दूर हैबड़े—छोटे डरो से डरकर संन्यासी हो जाता है।
      उस बूढ़े संन्यासी ने कहातुम डरते होसंन्यासी हो तुमकैसे संन्यासी होवह युवक कैप रहा है। उसने कहामुझे बहुत डर लग गया। सच मेंबहुत डर लग गया। अभी संन्यास वगैरह का कुछ खयाल नहीं आता। थोड़ा पानी मिल सकेगा,मेरे तो ओंठ सूख गये,बोलना मुश्‍किल है।
      बूढ़ा उठावृक्ष के नीचेजहां उसका पानी रखा थापानी लेकर गया। जब तक बूढ़ा लौटाउस युवक संन्‍यासी ने एक पत्थर उठाकर उस चट्टान पर जिस पर बूढ़ा बैठा थालेटता थाबुद्ध का नाम लिख दिया—नमो बुद्धा:। बूढा लौटाचट्टान पर पैर रखने को थानीचे दिखायी पड़ा नमो बुद्धा:। पैर कंप गयाचट्टान से नीचे उतर गया!
      वह युवक खूब हंसने लगा। उसने कहाडरते आप भी हैं। डर में कोई फर्क नहीं है। और मैं तो एक हा से डराजो बहुत वास्तविक था। और एक लकीर से मैंने लिख दियानमो बुद्धा:तो पैर रखने में डर लगता कि भगवान के नाम पर पैर न पड़ जाये!
      किसका डर ज्यादा हैवह युवा पूछने लगा। क्योंकि मैं खोजने आया था अभय। मैं पाता हूं आप '' निर्भय हैंअभय नहीं। निर्भय हैं सिर्फ। भय को मजबूत कर लिया है भीतर। चारों तरफ घेरा बना लिया है अभय का। सिंह नहीं डरातापागल हाथी नहीं डराताअजगर निकल जाते हैंसख्त हैं बहुत आप। लेकिन जिसके आधार पर सख्ती होगीवह आपका भय बना हुआ है। भगवान के आधार पर सख्त हो गये है। भगवानसुरक्षा बना लिया है। तो भगवान के खड़िया से लिखे नाम पर पैर रखने में डर लगता है!
      उस युवक ने कहाडरते आप भी हैं। डर में कोई फर्क नहीं पड़ा। और ध्यान रहेहाथी से डर जानापा से—बुद्धिमत्ता भी हो सकती है। जरूरी नहीं कि डर हो। बुद्धिमानी ही हो सकती है। लेकिन भगवान के नाम पर पैर रखने से डर जाना तो बुद्धिमानी नहीं कही जा सकती है। पहला डरबहुत स्वाभाविक हो सकता है। दूसरा डरबहुत साइकोलॉजिकलबहुत मानसिक और बहुत भीतरी है। हम सब डरे हुए हैं। बहुत भीतरी डर हैसब तरफ से मन को पकड़े हुए हैं। और हमारे भीतरी डरो का आधार वही होगाजिसके आधार पर हमने दूसरे डरो को बाहर कर दिया है।
      हम गाते हैं न कि निर्बल के बल राम! गा रहे हैं सुबह से बैठकर कि हे भगवाननिर्बल के बल तुम्हीं हो!
      किसी निर्बल का कोई बल राम नहीं है। जिसकी निर्बलता गयीवह राम हो जाता है।
निर्बलता गयी कि राम और श्याम में फासला ही नहीं रह जाता। निर्बलता ही फासला हैवही डिस्टेंस है। निर्बल के बल राम नहीं होते। निर्बलता राम होती ही नहीं। निर्बलता सिर्फ राम की कल्पना है। और निर्बलता को बचाने के लिए ढाल है। और सारी प्रार्थनापूजाभय को छिपाने का उपाय है। 'सिक्योरिटी मेजरमेंटहैऔर कुछ भी नहीं है। इंतजाम है सुरक्षा का।
      कोई बैंक में इंतजाम करता है रुपये डालकरकोई राम—राम—राम जपकर इंतजाम करता है भगवान की पुकार करके। सब इंतजाम है।
      लेकिन इंतजाम से भय कभी नहीं मिटता। ज्यादा से ज्यादा निर्भय हो सकते हैं आपलेकिन भय कभी नही मिटता। निर्भय से कोई अंतर नहीं पड़ताभय मौजूद रह जाता है। भय मौजूद ही रहता हैभीतर सरकता चला जाता है।
      जिस व्यक्ति के भीतर भय की पर्त चलती रहती हैवह व्यक्ति कभी भी युवा चित्त का नहीं हो सकता। उसकी सारी आत्मा बूढ़ी ह्में जाती है। फियर जो हैवह क्रिपलिग हैवह पंगु कर देता हैसब हाथ—पैर तोड़ डालता हैसब अपंग कर देता है।
      और हम सब भयभीत हैं—क्या करेंअभय कैसे होंफियरलेसनेस कैसे आये?
      निर्भयता तो हम सब जानते हैंआ सकती है। दंड—बैठक लगाने से भी एक तरह की निर्भयता आती हैक्योंकि आदमी जंगली जानवर की तरह हो जाता है। एक तरह की निर्भयता आती है। लोग ऊब जाते हैं दंड बैठक लगाने से। एक तरह की निर्भयता आ जाती है। वह निर्भयता नहीं है अभय। तलवार रख ले कोई। खुद के हाथ में न रखकरदूसरे के हाथों में रख दे।
पद पर पहुंच जाये कोईतो एक तरह की निर्भयता आ जाती है। दूनिया भर के सब भयभीत लोग पदों की खोज करते हैं। पद एक सुरक्षा देता है। अगर मैं राष्ट्रपति हो जाऊं तो जितना सुरक्षित रहूंगाबिना राष्ट्रपति हुए नहीं रह सकता। राष्ट्रपति के लिएजितने भयभीत लोग हैंसब दौड़ करते रहते हैं। डर गये हैं। भय है अकेले होने का। सुरक्षा चाहिएइंतजाम चाहिए। जिनको हम बहुत बड़े—बड़े पदों पर देखते हैंयह मत सोचना कि यह किसी निर्भयता के बल पर वहां पहुंच जाते हैं। वे निर्भयता के अभाव में ही पहुंचते हैंभीतर भय है।
      हिटलर के संबंध में मैंने सुना है कि हिटलर अपने कंधे पर हाथ किसी को भी नहीं छुआ सकता है। इसीलिए शादी भी नहीं कीकम से कम पत्नी को तो छुआना ही पड़ेगा। शादी से डरता रहा कि शादी कीतो पत्नी तो कम से कम कमरे में सोयेगीलेकिन भरोसा क्या है कि पत्नी रात में गर्दन न दबा दे। हिटलर दिखता होगाबहुत बहादुर आदमी।
      ये बहादुर आदमी सब दिखते हैं। यह सब बहादुरी बिलकुल ऊपरी हैभीतर बहुत डरे हुए आदमी हैं।
      हिटलर किसी से ज्यादा दोस्ती नहीं करता थाक्योंकि दोस्त के कारण जो सुरक्षा हैजो व्यवस्था हैवह टूट जाती है। दोस्तों के पास बीच के फासले टूट जाते हैं। हिटलर के कंधे पर कोई हाथ नहीं रख सकता था। हिमलर या गोयबल्‍स भी नहीं। कंधे पर हाथ कोई भी नहीं रख सकता है। एक फासला चाहिएएक दूरी चाहिए। कंधे पर हाथ रखने वाला आदमी खतरनाक हो सकता है। गर्दन पास ही हैकंधे से बहुत दूर नहीं है।
      एक औरत हिटलर को बहुत प्रेम करती रही। लेकिन भयभीत लोग कहीं प्रेम कर सकते हैंहिटलर उसे टालता रहा,टालता रहाटालता रहा। आप जानकर हैरान होंगेमरने के दो दिन पहलेजब मौत पकी हो गयीजब बर्लिन पर बम गिरने लगेतो हिटलर जिस तलघर में छिपा हुआ थाउसके सामने दुश्मन की गोलियां गिरने लगीं और दुश्मन के पैरों की आवाज बाहर सुनायी देने लगीद्वार पर युद्ध होने लगाऔर जब हिटलर को पका हो गया कि मौत निश्‍चित हैअब मरने से बचने का कोई उपाय नहीं हैतो उसने पहला काम यह किया है कि एक मित्र को भेजा और कहा कि जाओ आधी रात उस औरत को ले आओ। कहीं कोई पादरी सोया—जगा मिल जायेउसे उठा लाओ। शादी कर लूं। मित्रों ने कहायह कोई समय है शादी करने काहिटलर ने कहाअब कोई भय नहीं हैअब कोई भी मेरे निकट हो सकता हैअब मौत बहुत निकट है। अब मौत ही करीब आ गयी हैतब किसी को भी निकट लिया जा सकता है।
      दो घंटे पहले हिटलर ने शादी की तलघर में! सिर्फ मरने के दो घंटे पहले!
      तो पुरोहित और सेक्रेटरी को बुलाया था। उनकी समझ के बाहर हो गया कि यह किसलिए शादी हो रही है?
      इसका प्रयोजन क्या हैहिटलर होश में नहीं है। पुरोहित ने किसी तरह शादी करवा दी है। और दो घंटेउन्होंने जहर खाकर सुहागरात मना ली है और गोली मार ली है—दोनो ने! यह आदमी मरते वक्त तक.. भी नहीं कर सकाक्योंकि दूसरे आदमी का साथ रहनापास लेना खतरनाक हो सकता है।
      दुनिया के जिन बड़े बहादुरों की कहानियां हम इतिहास में पढ़ते हैबडी झूठी हैं। अगर दुनिया के बहादुरों भीतरी मन में उतरा जा सके तो वहा भयभीत आदमी मिलेगा। चाहे नादिर होचाहे चंगेज होचाहे तैमूर होवहां भीतर भयभीत आदमी मिलेगा।
      नादिर लौटता था आधी दूनिया जीतकरऔर ठहरा है एक रेगिस्तान में। रात का वक्त है। रात को सो सकता था। कैसे सोताडर सदा भीतर था। तंबू में सोया। चोर घुस गये है तंबू में। नादिर को मारने नही हैं। कुछ संपत्ति मिल जायेलेने को घुस गये हैं। नादिर घबड़ाकर बाहर निकला है। भागा है डरकरतंबूकी खूंटी में पैर फंसकर गिर पड़ा है और मर गया है।
      वे जो बड़े पदों की खोज मेंबड़े धन की खोज मेंबड़े यश की खोज मे—लोग लगे हैवे सिर्फ सुरक्षा रहे हैं। भीतर एक भय है। इतंजाम कर लेना चाहते हैं। भीतर एक दीवाल बना लेना चाहते हैंकोई डर नहीं है कल बीमारी आयेगरीबी आयेभिखमंगी आयेमृत्यु आये कोई डर नहीं है। सब इतंजाम किये लेते हैं। और लोग ऐसा इंतजाम करते हैंकुछ लोग भीतरी इंतजाम करते हैं!
      रोज भगवान की प्रार्थना कर रहे है—कि कुछ भी हो जाये। इतने दिन तक जो चिल्लाये हैवह वक्त पर पड़ेगा। इतने नारियल चढ़ायेइतनी रिश्वत दीवक्त पर धोखा दे गये हो?
      भय में आदमी भगवान को भी रिश्वत देता रहा है!
और जिन देशो मे भगवान को इतनी रिश्वत दी गयी होउन देशों में मिनिस्टर रूपी भगवानों को रिश्वत दी लगी हो तो कोई मुश्किल हैकोई हैरानी हैऔर जब इतना बड़ा भगवान रिश्वत ले लेता हो तो छोटे—मिनिस्टर ले लेते हों तो नाराजगी क्या हैभय हैभय की सुरक्षा के लिए हम सब उपाय कर रहे है। क्या ऐसे कोई आदमी अभय हो सकता हैक भी नहीं। अभय होने का क्या रास्ता हैसुरक्षा की व्यवस्था अभय होने का रास्ता नहीं है।
      असुरक्षा की स्वीकृति अभय होने का रास्ता है, 'ए टोटल एक्सेऐंस आफ इनसिक्योरिटीजीवन असुरक्षितइसकी परिपूर्ण स्वीकृति मनुष्य को अभय कर जाती है।
      मृत्यु हैउससे बचने का कोई उपाय नहीं हैउससे भागने का कोई उपाय नहीं है वह है। वह जीवन का एक तथ्य है। वह जीवन का ही एक हिस्सा है। वह जन्म के साथ ही जुड़ा है।
      जैसे एक डंडे में एक ही छोर नहीं होतादूसरा छोर भी होता है। और वह आदमी पागल हैजो एक छोर स्वीकारे और दूसरे को इनकार कर लेता है। सिक्‍के में एक ही पहलू नहीं होता हैदूसरा भी होता है। और वह पागल हैजो एक को खीसे में रखना चाहे और दूसरे से छुटकारा पाना चाहे। यह कैसे हो सकेगा?
      जन्म के साथ मृत्यु का पहलू जुडा है। मृत्यु हैबीमारी है,असुरक्षा हैकुछ भी निश्‍चित नहीं हैसब अनसर्टेन है।  
      जिंदगी ही एक अनसटेंनटी हैजिंदगी ही एक अनिश्‍चित है।
      सिर्फ मौत एक निश्‍चित है। मरे हुए को कोई डर नहीं रह जाता। जिंदा में सब असुरक्षा है। कदम—कदम पर असुरक्षा है।
      जो क्षण भर पहले मित्र थाक्षण भर बाद मित्र होगायह तय नहीं है। इसे जानना ही होगामानना ही होगा। क्षण भर पहले जो मित्र थावह क्षण भर बाद मित्र होगायह तय नहीं है। क्षण भर पहले जो प्रेम कर रहा थावह क्षण भर बाद फिर प्रेम करेगायह निश्‍चित नहीं है। क्षण भर पहले जो व्यवस्था थीवह क्षण भर बाद नहीं खो जायेगीयह निश्‍चित नहीं है। सब खो सकता हैसब जा सकता हैसब विदा हो सकता है। जो पत्ता अभी हरा हैवह थोड़ी देर बाद सूखेगा और गिरेगा। जो नदी वर्षा में भरी रहती हैथोड़ी देर बाद सूखेगी और रेत ही रह जायेगी।
      जीवन जैसा है उसे जान लेनाऔर जीवन में जो अनिश्‍चित हैउसका परिपूर्ण बोध और स्वीकृति मनुष्य को अभय कर देती है। फिर कोई भय नहीं रह जाता।
      मैं भावनगर से आया। एक चित्रकार को उसके मां—बाप मेरे पास ले आए। योग्यप्रतिभाशाली चित्रकार हैलेकिन एक अजीब भय से सारी प्रतिभा कुंठित हो गयी है। एक भय पकड़ गया हैजो जान लिये ले रहा है। अमरीका भी गया था वह,वहां भी चिकित्सा चली। मनोवैज्ञानिकों ने मनोविश्लेषण कियेसाइकोएनलिसिस की। कोई फल नहीं हुआ सब समझाया जा चुका हैकोई फल नहीं हुआ। मेरे पास लाये हैं,कहा कि हम मुश्किल में पड़ गये हैं। कोई फल होता नहीं है। सब समझा चुके हैंसब हो चुका है। इसे क्या हो गया हैयह एकदम भयभीत है।
      मैंने पूछाकिस बात से भयभीत हैतो उन्होंने कहा कि रास्ते पर कोई लंगड़ा आदमी दिख जायेतो यह इसको भय हो जाता है कि कहीं मैं लंगड़ा न हो जाऊं। अब बड़ी मुश्किल है। अंधा आदमी मिल जायेतो घर आकर रोने लगता है कि कहीं मैं अंधा न हो जाऊं। हम समझाते हैं कि तू अंधा क्यों होगातू बिलकुल स्वस्थ हैतुझे कोई बीमारी नहीं है। कोई आदमी मरता है रास्ते परबस यह बैठ जाता है। यह कहता है कहीं मैं मर न जाऊं। हम समझाते हैंसमझाते—समझाते हार गये। डाक्टरों ने समझायाचिकित्सकों ने समझायाइसकी समझ में नहीं पड़ता है।
      मैंने कहातुम समझाते ही गलत हो। वह जो कहता हैठीक ही कहता है। गलत कहां कहता हैजो आदमी आज अंधा हैकल उसके पास भी आंख थी। और जो आदमी आज लंगड़ा हैहो सकता है कि उसके पास भी पैर हों। और आज उसके पास पैर हैंकल वह लंगड़ा हो सकता है। और आज जिसके पास आंख हैकल वह अंधा हो सकता है। इसमें यह युवक गलत नहीं कह रहा है। गलत तुम समझा रहे हो। और तुम्हारे समझाने से इसका भय बढ़ता जा रहा है। तुम कितना ही समझाओ कि तू अंधा नहीं हो सकता है। गारंटी कराओ। कौन कह सकता है कि मैं अंधा नहीं हो सकता। सारी दूनिया कहे तो भी निश्‍चित नहीं है कि मैं अंधा नहीं हो सकता। अंधा मैं हो सकता हूं क्योंकि आंखें  अंधी हो सकती हैं। मेरी आंखों ने कोई ठेका लिया है कि अंधी नहीं हों! पैर लंगड़े हुए हैं। मेरा पैर लंगड़ा हो सकता है। आदमी पागल हुए हैं। मैं पागल हो सकता हूं। जो किसी आदमी के साथ कभी भी घटा है—वह मेरे साथ भी घट सकता हूएएक्योंकि सारी संभावना सदा है।
      मैंने कहाइस युवक को तुम गलत समझा रहे हो। तुम्हारे गलत समझाने से —यह कितनी ही कोशिश करे कि मैं अंधा नहीं हो सकतालेकिन इसे दिखायी पड़ता है कि अंधे होने की संभावना—तुम कितना ही कहो कि नहीं हो सकता है—मिटती नहीं।
      उस युवक ने कहायही मेरी तकलीफ है। यह जितना समझाते हैंउतना मैं भयभीत हुए चला जा रहा हूं। मैंने उससे कहा कि यह बिलकुल ही गलत समझाते हैं। मैं तुमसे कहता हूं तुम अंधे हो सकते होतुम लंगड़े हो सकते होतुम कल सुबह मर सकते होतुम्हारी पत्नी तुम्हें कल छोड़ सकती हैमां तुम्हारी दुश्मन हो सकती हैमकान गिर सकता हैगांव नष्ट हो सकता हैसब हो सकता है। इसमें कुछ इनकार करने जैसा जरा भी नहीं है। इसे स्वीकार करो। मैंने कहातुम जाओइसे स्वीकार करो। सुबह मेरे पास आना।
      यह युवक गया है—तभी मैंने जाना है कि वह कुछ और ही होकर जा रहा है। अब कोई लड़ाई नहीं है। जो हो सकता है,और जिससे बचाव का कोई उपाय नहीं हैऔर जिसके बचाव का कोई अर्थ नहीं है और जिसके लड़ने की मानसिक तैयारी बेमानी है। वह हलका होकर गया है।
      वह सुबह आया है और उसने कहा कि तीन साल में मैं पहली दफे सोया हूं। आश्रर्यकि यह बात स्वीकार कर लेने से हल हो जाती है कि मैं अंधा हो सकता हूं। ठीक हैहो सकता हू।
      मैंने कहातुम डरते क्यों हो अंधे होने सेउसने कहा कि डरता इसलिए हूं कि फिर चित्र न बना पाऊंगा। तो मैंने कहाजब तक अंधे नहीं होचित्र बनाओव्यर्थ में समय क्यों खोते हो। जब अंधे हो जाओगेनहीं बना पाओगेपका है। इसलिए बना लोजब तक आंख—हाथ हैबना लो। जब आंख विदा हो जायेतब कुछ और करना।
      लेकिन आंख विदा हो सकती है। सारा जीवन ही विदा होगा एक दिनसब विदा हो सकता है। किसी की सब चीजें इकट्ठी विदा होती हैंकिसी की फुटकर—फुटकर विदा होती हैंइसमें झंझट क्या हैएक आदमी होलसेल चला जाता हैएक आदमी पार्ट—पार्ट में जाता हैटुकड़े—टुकड़े में जाता है। किसी की आंख चली गयी तो कुछ औरफिर कुछ और गया। कोई आदमी इकट्ठे ही चला गया।
इकट्ठे जाने वाले समझते हैं कि जिनके थोड़े— थोड़े हिस्से जा रहे हैंवे अभागे हैं। बड़ी मुश्किल बात है। इतना ही क्या कम सौभाग्य है कि सिर्फ आंख गयी है। अभी पैर नहीं गयाअभी पूरा नहीं गया। इतना ही क्या कम सौभाग्य है कि सिर्फ पैर गये हैंअभी पूरा आदमी नहीं गया है।
      बुद्ध का एक शिष्य था.. उस युवक से मैंने यह कहानी कही थीवह मैं आपको अभी कहता हूं। उस युवक से मैंने कहा कि अब तू भय के बाहर हो गया है।
      इनसिक्योरिटी को जिसने स्वीकार कर लिया हैवह भय के बाहर हो जाता हैवह अभय हो जाता है।
      बुद्ध का एक शिष्य है पूर्ण। और बुद्ध ने उसकी शिक्षा पूरी कर दी है और उससे कहा हैअब तू जा और खबर पहुंचा लोगों तक। पूर्ण ने कहामैं जाना चाहता हूं सूखा नाम के एक इलाके में।
बुद्ध ने कहावहां मत जानावहां के लोग बहुत बुरे हैं। मैंने सुना हैवहां कोई भिक्षु कभी भी गया तो अपमानित होकर लौटा हैभाग आया है डरकर। बड़े दुष्ट लोग हैवहां मत जाना।
      उस पूर्ण ने कहालेकिन वहां कोई नहीं जायेगातो उन दुष्टों का क्या होगाबड़े भले लोग हैंसिर्फ गालियां ही देते हैंअपमानित ही करते हैंमारते नहीं। मार भी सकते थेकितने भले लोग हैंकितने सज्जन हैं?
      बुद्ध ने कहासमझा। यह भी हो सकता है कि वे तुझे मारें भीपीटें भी। पीड़ा भी पहुंचायेकाटे भी छेदेंपत्थर मारें,फिर क्या होगा?
      तो पूर्ण ने कहायही होगा भगवानकि कितने भले लोग हैं कि सिर्फ मारते हैंमार ही नहीं डालते हैं। मार डाल सकते थे।
      बुद्ध ने कहाआखिरी सवाल। वे तुझे मार भी डाल सकते हैंतो मरते क्षण में तुझे क्या होगा?
पूर्ण ने कहाअन्तिम क्षण में धन्यवाद देते विदा हो जाऊंगा कि कितने अच्छे लोग हैं कि इस जीवन से मुक्ति दीजिसमें भूल—चूक हो सकती थी।
      बुद्ध ने कहाअब तू जा। अब तू अभय हो गया। अब तुझे कोई भय न रहा। तूने जीवन की सारी असुरक्षा सारे भय को स्वीकार कर लिया। तूने निर्भय बनने की कोशिश ही छोड़ दी।
      ध्यान रहेभयभीत आदमी निर्भय बनने की कोशिश करता है। उस कोशिश से भय कभी नहीं मिटता है। उसको उपलब्ध होता है—जो भय हैऐसी जीवन की स्थिति है—इसे जानता हैस्वीकार कर लेता है। भय के बाहर हो जाता है। और युवा चित्त उसके भीतर पैदा होता हैजो भय के बाहर हो जाता है।
      एक सूत्र युवा चित्त के जन्म के लिएभय के बाहर हो जाने के लिए अभय है।
      और दूसरा सूत्र.?? पहला सूत्र हैबूढ़े चित्त का मतलब है 'क्रिपल्ड विद फियर', भय से पुंज।
      और दूसरा सूत्र है... बूढ़े चित्त का अर्थ है, 'बर्डन विद नालेज', ज्ञान से बोझिल।
      जितना बूढ़ा चित्त होगा उतना ज्ञान से बोझिल होगा। उतने पांडित्य का भारी पत्थर उसके सिर पर होगा। जितना युवा चित्त होगाउतना ज्ञान से मुक्त होगा।
      उसने स्वयं ही जो जाना हैजानते ही उसके बाहर हो जायेगा और आगे बढ़ जायेगा। 'ए कास्टेंट अवेयरनेस आफ नाट नोन'। एक सतत भाव उसके मन में रहेगानहीं जानता हूं। कितना ही जान लेउस जानने को किनारे हुआन जानने के भाव को सदा जिंदा रखेगा। वह अतीत में भी क्षमता रखेगा। रोज सब सीख सकेगापल सीख सकेगा। कोई ऐसा क्षण नहीं होगाजिस दिन वह कहेगा कि मैं पहले से ही जानता हूं इसलिए सिखने की अब कोई जरूरत नहीं है। जिस आदमी ने ऐसा कहावह बूढ़ा हो गया।
      युवा चित्त का अर्थ है : सीखने की अनंत क्षमता।
      बूढ़े चित्त का अर्थ है : सीखने की क्षमता का अंत।
      और जिसको यह खयाल हो गयामैंने जान लिया हैउसकी सीखने की क्षमता का अंत हो जाता है।
      और हम सब भी जान से बोझिल हो जाते हैं। हम ज्ञान इसीलिए इकट्ठा करते हैं कि बोझिल हो जायें। ज्ञान हम सिर पर लेकर चलते हैं। जान हमारा पंख नहीं बनता हैज्ञान हमारा पत्थर बन जाता है।
      ज्ञान बनना चाहिए पंख। ज्ञान बनता है पत्थर।
      और ज्ञान किनका पंख बनता हैजो निरंतर और—और—और जानने के लिए खुले हैं मुक्त हैंद्वार जिनके बंद नहीं है।
      एक गांव में एक फकीर था। उस गांव के राजा को शिकायत की गयी कि वह फकीर लोगों को भ्रष्ट कर रहा है। असल में अच्छे फकीरों ने दूनिया को सदा भ्रष्ट किया ही है। वे करेंगे हीक्योंकि दुनिया भ्रष्ट है। और इसको बदलने के लिए भ्रष्ट करना पड़ता है। दो भ्रष्टताएं मिलकर सुधार शुरू होता है। दूनिया भ्रष्ट है। इस दुनिया को ऐसा ही स्वीकार कर लेने के लिए कोई संन्यासीकोई फकीर कभी राजी नहीं हुआ है।
      गांव के लोगों ने खबर कीपंडितों ने खबर की कि यह आदमी भ्रष्ट कर रहा है। ऐसी बातें सिखा रहा हैजो किताबों में नहीं हैं। और ऐसी बातें कह रहा है कि लोगों का संदेह जग जाये। और लोगों को ऐसे तर्क दे रहा है कि लोग भ्रमित हो जायेंसंदिग्ध हो जायें।
      राजा ने फकीर को बुलाया दरबार मेंऔर कहा कि मेरे दरबार के पंडित कहते हैं कि तुम नास्तिक हो। तुम लोगों को भ्रष्ट कर रहे हो। तुम गलत रास्ता दे रहे हो। तुम लोगों में संदेह पैदा कर रहे हो।
      उस फकीर ने कहामैं तो सिर्फ एक काम कर रहा हूं कि लोगों को युवक बनाने की कोशिश कर रहा हूं। लेकिन अगर तुम्हारे पंडित ऐसा कहते हैं तो मैं तुम्हारे पंडितों से कुछ पूछना चाहूंगा।
राजा के बड़े सात पंडित बैठ गये। उन्होंने सोचा वे तैयार हो गये!
      पंडित वैसे भी एवररेडीहमेशा तैयार रहता हैक्योंकि रेडिमेड उत्तर से पंडित बनता है। पंडित के पास कोई बोध नहीं होता है। जिसके पास बोध होवह पंडित बनने को राजी नहीं हो सकता है। पंडित के पास तैयार उत्तर होते हैं।
      वे तैयार होकर बैठ गए हैं। उनकी रीढें सीधी हो गयीं—जैसे छोटे बच्चे स्कूल में परीक्षाएं देने को तैयार हो जाते हैं। छोटे बच्चों मेंबड़े पंडितों में बहुत फर्क नहीं। परीक्षाओं में फर्क हो सकता है। तैयार हो गया पंडितों का वर्ग। उन्होंनें कहापूछो। सोचा की शायद पूछेगाब्रह्म क्या हैमोक्ष क्या हैआत्मा क्या हैकठिन सवाल पूछेगा। तो सब उत्तर तैयार थे। उन्होंने मन में दुहरा लिए जल्दी से कि क्या उत्तर देने हैं।
      जिस आदमी के पास उत्तर नहीं होता हैउसके पास बहुत उत्तर होते हैं! और जिसके पास उत्तर होता हैउसके पास तैयार कोई उत्तर नहीं होता है! प्रश्र आता है तो उत्तर पैदा होता है। उनके पास प्रश्र पहले से तैयार होते हैंजिनके पास बोध नहीं होता है! क्योंकि बोध न हो तो प्रश्र तैयारप्रश्र का उत्तर तैयार होना चाहिएनहीं तो वक्त पर मुश्किल हो जायेगा।
      उन पंडितों ने जल्दी से अपने सारे जान की खोजबीन कर ली होगी। उसने चार—पांच कागज के टुकड़े उन पंडितों के हाथ में पक्का दियेएक—एक टुकडा। और कहा कि एक छोटा—सा सवाल पूछता हूं व्हाट इज ब्रेडरोटी क्या है?
      पंडित मुश्किल में पड़ गएक्यौंकि किसी किताब में नहीं लिखा हुआ हैकिसी उपनिषद में नहींकिसी वेद में नहीं,किसी पुराण में नहीं। व्हाट इज ब्रेडरोटी क्या हैकहा कि कैसा नासमझ आदमी है! कैसा सरल सवाल पूछता है।
      लेकिन वह फकीर समझदार रहा होगा। उसने कहाआप लिख दें एक—एक कागज पर। और ध्यान रहे एक दूसरे के कागज को मत देखनाक्योंकि पंडित सदा चोर होते हैं। वह सदा दूसरों के उत्तर सीख लेते हैं। आसपास मत देखना। जरा दूर—दूर हटकर बैठ जाओ। अपना—अपना उत्तर लिख दो।
      राजा भी बहुत हैरान हुआ। राजा ने कहाक्या पूछते हो तुमउसने कहाइतना उत्तर दे दें तो गनीमत है। पंडितों से ज्यादा आशा नहीं करनी चाहिए। बड़ा सवाल बाद में पूछूंगाअगर छोटे सवाल का उत्तर आ जाये।
      पहले आदमी ने बहुत सोचारोटीयानी क्याफिर उसने लिखा कि रोटी एक प्रकार का भोजन है। और क्या करता?दूसरे आदमी ने बहुत सोचा रोटी यानी क्यातो उसने लिखारोटी आटापानी और आग का जोड़ है। और क्या करतातीसरे आदमी ने बहुत सोचारोटी यानी क्याउसे उत्तर नहीं मिलता। तो उसने लिखारोटी भगवान का एक वरदान है। पांचवें ने लिखा कि रोटी एक रहस्‍य हैएक पहेली हैक्योंकि रोटी खून कैसे बन जाती हैयह भी पता नहीं। रोटी एक बड़ा रहस्य है,रोटी एक मिस्ट्री है। छठे ने लिखारोटी क्या हैयह सवाल ही गलत है। यह सवाल इसलिए गलत है कि इसका उत्तर ही पहले से कहीं लिखा हुआ नहीं है। गलत सवाल पूछता है यह आदमी। सवाल वह पूछने चाहिएजिनके उत्तर लिखें हो। सातवें आदमी ने कहा कि मैं उत्तर देने से इनकार करता हूं क्योंकि उत्तर तब दिया जा सकता हैजब मुझे पता चल जाये कि पूछने वाले ने किस दृष्टि से पूछा हैतो रोटी यानी क्याहजार दृष्टिकोण हो सकते हैंहजार उत्तर हो सकते हैं। समाजदवादी रहा होगा। कहा कियह भी हो सकता हैवह भी हो सकता है।
      सातों उत्तर लेकर राजा के हाथ में फकीर ने दे दिये और उससे कहा कि ये आपके पंडित हैं। इन्हें यह पता नहीं कि रोटी क्या हैऔर इनको यह पता है कि नास्तिक क्या हैआस्तिक क्या है! लोग किससे भ्रष्ट होंगेकिससे बनेंगेयह इनको पता हो सकता है!
      राजा ने कहा पंडितोंएकदम दरवाजे के बाहर हो जाओ। पंडित बाहर हो गए। उसने फकीर से पूछा कि तुमने ख. मुश्किल में डाल दिया है।
      फकीर ने कहाजिनकी खोपडी पर भी जान का बोझ हैउन्हें सरल—सा सवाल मुश्किल में डाल सकता है। ज्यादा बोझउतनी समझ कम हो जाती है। क्योंकि यह खयाल पैदा हो जाता है बोझ से कि समझ तो है। और समझ ऐसी चीज है कि कास्टेंटली क्रिएट करनी पड़ती हैहै नहीं। कोई ऐसी चीज नहीं है कि आपके भीतर छ है समझ। उसे आप रोज पैदा करिये तो वह पैदा होती हैऔर बंद कर दीजिये तो बंद हो जाती है।
      समझ साइकिल चलाने जैसी है। जैसे एक आदमी साइकिल चला रहा है। अब साइकिल चल पडी है। अब वह कहता है,साइकिल तो चल पड़ी हैअब पैडल रोक लें। अब पैडल रोक लेंसाइकिल चलेगीचारछह—कदम के बाद गिरेगा। हाथ—पैर तोड़ देगा। साइकिल का चलाना निरंतर चलने के ऊपर निर्भर है।
      प्रतिभा भी निरंतर गति है। जीनियस कोई 'डैड स्टेटिक एन्टाइटीनहीं है। प्रतिभा कोई ऐसी चीज नहीं है कि कहीं रखी है भीतरकि आपके पास कितनी प्रतिभा हैसेर भर और किसी के पास दो सेर! ऐसी कोई चीज नहीं प्रतिभा।
      प्रतिभा मूवमेंट हैगति हैनिरंतर गति है।
      इसलिए निरंतर जो सृजन करता हैउसके भीतरमस्तिष्कबुद्धि और प्रतिभाप्रज्ञा पैदा होती है। जो सृजन बंद कर देता है उसके भीतर जंग लग जाती है और सब खत्म हो जाती है।
      रोज चलिए। और चलेगा कौनजिसको यह खयाल नहीं है कि मैं पहुंच गया। जिसको यह खयाल हो गया कि पहुंच गयावह चलेगा क्योंवह विश्राम करेगावह लेट जाएगा। जान का बोध पहुंच जाने का खयाल पैदा करवा देता है कि हम पहुंच गयेपा लियाजान लियाअब क्या हैरुक गये।
      ज्ञान कितना ही आयेऔर ज्ञान आने की क्षमता निरंतर शेष रहनी चाहिए। वह तभी रह सकती हैजब ज्ञान बोझ न बने। जान को हटाते चलें। रोज सीखें। और रोज जो सीख जायेंराख की तरह झाडू दें। और कचरे कि तरह—जैसे सुबह फेंक दिया था घर के बाहर कचराऐसे रोज सांझजो जानाजो सीखाउसे फेंक दें। ताकि कल आप फिर ताजे सुबह उठेंऔर फिर जान सकेंफिर सीख सकेंसीखना जारी रहे।
      ध्यान रहेक्या हम सीखते हैंयह मूल्यवान नहीं है। कितना हम सीखते हैं—उस सीखने की प्रक्रिया से गुजरने वाली आला निरंतर जवान होती चली जाती है।
      सुकरात जितना जवानी में रहा होगा मरते वक्तउससे ज्यादा जवान है। क्योंकि मरते वक्त भी सीखने को तैयार है। मर रहा हैजहर दिया जा रहा हैजहर बाहर बांटा जा रहा है। सारे मित्र रो रहे हैंऔर सुकरात उठ—उठकर बाहर जाता है,और जहर घोंटने वाले से पूछता है बड़ी देर लगाते हो! समय तो हो गयासूरज अब डूबा जाता है। वह जहर घोंटने वाला कहने लगापागल हो गये हो सुकरात! मैं तुम्हारी वजह से धीरे— धीरे घोंटता हूं कि तुम थोड़ी देर और जिंदा रह लो। ताकि इतने अच्छे आदमी का पृथ्वी पर और थोड़ी देर रहना हो जाये। तुम पागल होतुम खुद ही इतनी जल्दी मचा रहे होतुम्हें जल्दी क्या हैउसके मित्र पूछते हैं,इतना जल्दी क्या हैक्यों इतनी मरने की आतुरता है?
      सुकरात कहता हैमरने की आतुरता नहींजीवन को जानामौत भी जानने का बडा मन हो रहा है कि क्या है मौत! क्या है मौतमरने के क्षण पर खड़ा हुआ आदमी जानना चाहता है कि क्या है मौत! यह आदमी जवान हैइसको मार सकते होइसका मारना बहुत मुश्‍किल है। इसको मौत भी नहीं मार सकती है। यह मौत को भी जान लेगा और पार हो जायेगा।
      जो जान लेता हैवह पार हो जाता है। जिसे हम जान लेते हैंउससे पार हो जाते हैं।
      लेकिन हम मरने के पहले ही जानना बंद कर देते हैं। आमतौर से बीस साल केइक्कीस साल के करीब आदमी की बुद्धि ठप हो जाती है। उसके बाद बुद्धि विकसित नहीं होतीसिर्फ संग्रह बढ़ता चला जाता है—सिर्फ संयत। दस पत्थर की जगह पन्द्रह पत्थर हो जाते हैंबीस पत्थर हो जाते हैं। दस किताबों की जगह पचास किताबें हो जाती हैंलेकिन क्षमता जानने की फिर आगे नहीं बढ़ती। बस इक्कीस साल में आदमी बुद्धि के हिसाब से मर जाता है! बूढ़ा हो जाता है।
      कुछ लोग और जल्दी मरना चाहते हैं—और जल्दी! और जो जितना जल्दी मर जाता हैसमाज उसको आदमी ही आदर देता है। तो जितना देर जिंदा रहेगाउससे उतनी तकलीफ होती है समाज को। क्योंकि जिंदा आदमी सोचने वाला आदमी,खोजने वाला आदमी नए पहलू देखता हैनये आयाम देखता है, 'डिस्टर्बिंग होता है। बहुत—सी जगह चीजों को तोड़ता—मरोड़ता मालूम होता है। हम सब जान के बोझ से दब गये है।
      मैंने सुना हैएक आदमी घोड़े पर सवार जा रहा हैएक गांव को। गांव के लोगों ने उसे घेर लिया और कहा कि तुम बहुत अदभुत आदमी हो। वह आदमी अदभुत रहा होगा। वह अपना पेटी बिस्तर सिर पर रखे था और घोड़े के ऊपर बैठा हुआ था। गांव के लोगों ने पूछायह तुम क्या कर रहे होघोड़े पर पेटी बिस्तर सा। लो। उसने कहाघोड़े पर बहुत ज्यादा वजन हो जायेगा,इसलिए मैं अपने सिर पर रखे हुए हूं!
      उस आदमी ने सोचा कि घोड़े पर पेटी बिस्तर रखने से बहुत वजन हो जायेगाकुछ हिस्सा बंटा लें। खुद घोड़े पर बैठे हुए है और पेटी बिस्तर अपने सिर पर रखे हुए हैताकि अपने पर कुछ वजन पड़े और घोड़े पर वजन कम हो जाये।
      ज्ञान को अपने सिर पर मत रखिये। जिंदगी काफी समर्थ है। आप छोड़ दीजिएआपकी जिंदगी की धारा उसे. संभाल लेगी। उसे सिर पर रखने की जरूरत नहीं। और सिर पर रखने से कोई फायदा नहीं। आप तो छोड़िए। जो भी उसमें एसेंशियल हैजो भी सारभूत हैवह आपकी चेतना का हिस्सा होता चला जायेगा।
      उसे सिर पर मत रखिए। किताबों को सिर पर मत रखिएरेडीमेड उत्तर सिर पर मत रखिए। बंधे हुए उत्तर से बचिये,बंधे हुए ज्ञान से बचिए और भीतर एक युवा चित्त पैदा हो जायेगा। जो व्यक्ति ज्ञान के बोझ से मुक्त हो जाता हैजो व्यक्ति भय से मुक्त हो जाता हैवह व्यक्ति युवा हो जाता है।
      और जो व्यक्ति का होने की कोशिश में लगा हैअपने ही हाथों सेक्योंकि ध्यान रहेमैं कहता हूं कि बुढ़ापा अर्जित है। बुढ़ापा है नहीं। हमारा अचीवमेंट हैहमारी चेष्टा से पाया हुआ फल है।
जवानी स्वाभाविक हैयुवा चित्त होना स्वभाव है। वृद्धावस्था हमारा अर्जन है। अगर हम समझ जायेंचित्त से कैसे वृद्ध होता हैतो हम तत्क्षण जवान हो जायेंगे।
      बूढ़ा चित्त बोझ से भरा चित्त हैजवान चित्त निर्बोझ है। बोझिल है बूढा चित्त।
      जवान चित्त निर्बोझ हैवेटलेस है। जवान चित्त ताजा है। जैसे सुबह अंकुर खिला होनिकला हो नये बीज सेऐसा ताजा है। जैसे नया बच्चा पैंदा हुआ होजैसे नया फूल खिला होजैसी नयी ओस की बूंद गिरी होनयी किरण उठी होनया तारा जगा होवैसा ताजा है।
      बूढ़ा चित्त जैसे अंगारा बुझ गयाराख हो गया हो। पत्ता सड़ गयागिर गयामर गया। जैसे दुर्गंध इकट्ठी हो गयी हो,सड़ गयी हो लाश। इकट्ठी कर ली हैं लाशेंतो घर में रख दी हैंतो बास फैल गयी हो। ऐसा है बूढ़ा चित्त।
      नया चित्तताजा चित्त, 'यंग माइंडनदी की धारा की तरह तेजपत्थरों को काटताजमीन को तोड़तासतर की तरफ भागता है। अनंतअज्ञात की यात्रा पर।
      और बूढ़ा चित्ततालाब की तरह बंद। न कहीं जातान कहीं यात्रा करता हैन कोई सागर है आगेन कोई पथ हैन कोई जमीन काटतान पत्थर तोड़तान पहाड़ पार करता—कहीं जाता ही नहीं। बूढ़ा चित्त बंदअपने में घूमतासड़तागंदा होता। सूरज की धूप में पानी उड़ता और सूखता और कीचड़ होता चला जाता है। इसलिए जवान चित्त जीवन हैबूढा चित्त मृत्यु है।
      और अगर जीवन को जानना होपरम जीवन कोजिसका नाम परमात्मा हैउस परम जीवन कोतो युवा चित्त चाहिएयंग माइंड चाहिए।
      और हमारे हाथ में है कि हम अपने को बूढ़ा करें या जवान। हमारे हाथ में है कि हम वृद्ध हो जायेंसड़ जायें या युवा होंताजे और नये। नये बीज की तरह हमारे भीतर कुछ फूटे या पुराने रिकार्ड की तरह कुछ बार—बार रिपीट होता रहे। हमारे हाथ में है सब।
      आदमी के हाथ में है कि वह प्रभु के लिए द्वार बन जाये। तो युवा है भीतरप्रभु के लिये द्वार बन गया।
      और जो बूढ़ा हो गया उसकी दीवाल बंद हैद्वार बन्द है। वह अपने में मरेगागलेगासड़ेगा। कब्र अतिरिक्त उसका कहीं और पहुंचना नहीं होता।
      लेकिन अब तक जो समाज निर्मित हुआ हैवह बूढ़े चित्त को पैदा करने वाला समाज है।
      एक नया समाज चाहिएजो नये चित्त को जन्म देता हो। एक नयी शिक्षा चाहिएजो बूढे चित्त को पैदा करती हो और नये चित्त को पैदा करती हो। एक नयी हवानया प्रशिक्षणनयी दीक्षानया जीवनएक वातावरण चाहिएजहां अधिकतम लोग जवान हो सकें। बूढ़ा आदमी अपवाद हो जायेवृद्ध चित्त अपवाद जायेजहां युवा चित्त हो।
      अभी उलटी बात है। युवा चित्त अपवाद है। कभी कोई बुद्धकभी कोई कृष्णकभी कोई क्राइस्ट युवा है और परमात्मा की सुगंध और गीत और नृत्य से भर जाता है। हजारों साल तक उसकी सुगंध खबर लाती है। इतनी ताजगी पैदा कर जाता है कि हजारों साल तक उसकी सुगंध आती है। उसके प्राणों से उठी हुई पुकार गूंजती रहती है। कभी ये मनुष्यता के लंबे इतिहास में दो—चार लोग युवा होते हैं। हम सब के ही पैदा होते हैं बूढ़े ही मर जाते हैं!
      लेकिनहमारे अतिरिक्त और कोई जिम्मेदार नहीं है। यह मैने दो बातें निवेदन कीं। इन पर सोचना। मेरी मान मत लेना। जो मानता हैवह बूढ़ा होना शुरू हो जाता है। सोचनागलत हो सकता होसब गलत हो सकता है। जो मैंने कहाएक भी ठीक न हो। सोचनाखोजनाशायद कुछ ठीक हो तो वह आपके जीवन को युवा करने में मित्र बन सकता है।
      मेरी बातों को इतने प्रेम और शांति से सुनाउससे अनुग्रहीत हूं और अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा प्रणाम करता हूं।
मेरे प्रणाम स्वीकार करें।

अहमदाबाद,
20 अगस्त 1969, रात्रि
संभोग से समाधि की

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